ये आज की बात तो नहीं है!

खुद ही चलकर, खुद ही गिरकर उठके फिर से चलना जो हमें आता है; लाख उठे तूफान फिर भी, दीये की तरह जलना जो हमें आता है; ये आज की तो बात नहीं है! रूह के कतरे मेरे बिखर बिखर कर जुड़े थे, सारे गम जाने कितने दिन खामोश पड़े Read more…

श्रृंगारिका

कहदो जो एक बार तुम बस पलके झुकाकर, तुम्हारी जुल्फों की छांव में एक पल बिता सकूँ; खामोश हो लब्ज, नजरें बयाँ करे, के तुम्हारी आँखों मे डूबकर मिलेगा सुकून..! के मेरी उँगलियाँ ले नाप तुम्हारे गालों पर, चढ़ती हुई उस लाली का; के मेरे सब्र का फल वही है, Read more…