नाक के नीचे से – भाग 1

नाक के नीचे से – अंतिम भाग!


महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से सुबह के छह बजे बिना चाय पानी पिये भी क्या मुलाकात करनी थी कि गृह सचिव इतनी जल्दी में थे? बात ही ऐसी थी. दरअसल तिवारी जी खुद मराठी थे. मुम्बई में पले बढ़े, IAS बने और देश की सेवा में गृह सचिव के पद तक पहुंच गए. IB की तरफ से गृह मंत्रालय को खबर मिली थी कि शहरों में छुपे हुए माओवादी बड़े पैमाने पर महाराष्ट्र के बीस बड़े शहरों में दंगे कराने वाले है. इसमें महाराष्ट्र सरकार के लोग भी शामिल है और प्रदेश के बड़े राष्ट्रीय नेता जाधव साहब का सीधे तौर पर IB की तरफ से नाम आया था. महाराष्ट्र के गृह मंत्रालय से इस बात का कोई जिक्र तक नहीं हुआ था. तिवारी जी अपनी तरफ से जायजा लेने खुद पहुंचे थे, गृहमंत्री जी को बोलने से पहले. तिवारी जी इसीलिए नहीं चाहते थे कि मुख्यमंत्री जी से हुई उनकी कोई भी मुलाकात मीडिया को पता चले. वो मंत्रालय से छुट्टी लेकर घर जाने के नाम से निकले थे. बिना अपॉइंटमेंट के सीएम साहब से मिलना उनके लिए कोई खास मुश्किल काम नहीं था. बहरहाल सरकार बचाने के चक्कर मे मुख्यमंत्री ने भी इस मुलाकात को बाहर नहीं आने दिया. एक चाल तो तिवारीजी बखूबी चल गए. भला पाटिल साहब राजनीति के कच्चे हो लेकिन किसी पदासीन मुख्यमंत्री को इतनी चतुराई से गुमराह करना बड़े बड़े राजनेताओं को न आता हो, लेकिन इस अधिकारी ने कर दिखाया.

लेकिन क्या सरकार गिरने से खतरा टला था? जाधव साहब की पार्टी के विधायक की हत्या हुई थी. संकट अभी बढा था.

और इस तरफ जाधव साहब की चिंताएं भी. क्या जाधव साहब सच मे माओवादियोंसे मिले थे..? देखेंगे….

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैस्वालजी को केंद्रीय गृहमंत्रीने तुरंत बैठक में बुलाया. जैस्वाल जी और तिवारी जी इकट्ठा मतलब जेम्स बॉन्ड और शेरलॉक होम्स की जोड़ी. और उस मीटिंग में माओवादियों की सारी हरकतों का किस तरह पर्दाफाश किया गया इसका रिपोर्ट दोनों ने दिया.

IB अपनी तरफ से देश के दुश्मनों पर कड़ी निगाह बनाये रखता है. लेकिन कुछ बातें उनकी पकड़ में नहीं आ सकती थी. फिर भी संभाव्य माओवादी आक्रमण का अंदाजा उन्हें आया था. हमला किस प्रकार होनेवाला था इसका अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल था.

तिवारीजी जिस दिन दिल्ली से निकलने वाले थे तो जान बूझ कर सीधे रास्ते मुम्बई नहीं आये. ये खबर तो माओवादियो को लग गई थी और वो अपना प्लान रद्द करनेवाले थे, क्योंकि पकड़े जाते. लेकिन तिवारीजी लखनऊ गए और उस वक़्त ऐसा दिखाया गया कि यूपी के गृहमंत्री से उनका काम चल रहा है. दंगे भी उस रात उन्होंने खुद लगाए थे जिसके चलते माओवादियों को भरोसा हो जाये कि केंद्रीय गृह सचिव महाराष्ट्र नहीं आएंगे. उन दंगो में जान का कोई नुकसान नहीं हुआ ये आश्चर्य नहीं था. आधी रात को स्पेशल फ्लाइट लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से सुबह मिल लिए और इसकी कानोकान खबर नहीं लगी किसीको, क्योंकि बेट ही लगी थी महाराष्ट्र के गृहमंत्री पर. अगर सरकार बचती तो साथी दल के जो नेता उस वक्त गृहमंत्री थे उनको निकाल के तिवारीजी आएंगे ऐसा मुख्यमंत्री जी से तय किया गया. यही पे तिवारीजी का सबसे बड़ा दाँव था. दरअसल महाराष्ट्र सरकार का साथी दल और राज्य के गृहमंत्री शामिल थे. उनको बिना अंदाजा लगाए उनपे नजर रखनी थी.

इस नाटक के दूसरे छोर पर पर्दा लिए बैठे थे राज्य के विपक्ष नेता और केंद्र सरकार के पक्ष से देशपांडे जी, जो राज्य के पूर्वी गृहमंत्री रहे थे और महाराष्ट्र के माओवादी नेटवर्क को अच्छी तरह से पहचानते थे. उनकी दूसरी खासियत ये थी के सभी दलों के सभी बड़े नेता और लगभग हर विधायक से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे. 58 बागी विधायक तोड़ना कोई बड़ी बात नहीं थी. सरकार गिरना तो इस प्लैनिंग में बड़ी ही आम प्रक्रिया रही.

सरकार गिरने के सोलहवे दिन माओवादीयों को पालनेवाले समाजसेवी संगठन किस तरह पकड़े गए ये नहीं समझा? चलिए समझाते है. उन 58 बागी विधायकों को दिल्ली से 32 किमी दूर एक रिसॉर्ट में रखा था. उनमे से एक था वाटवे. इस वाटवे का पकड़े गए चंदू केशव से जीजा-साले का रिश्ता था. भलेही वाटवे खुद उसमें शामिल न हो पर वो चंदू की हरकतों से वाकिफ था. रहीम कला मंच तो राडार पर था ही, चंदू के रिश्तेदार को इस कदर दबोच लिया गया कि न सिर्फ चंदू, उसने रहीम कला मंच समेत महाराष्ट्र के कई माओवादी संघठनों के पते खोलकर रख दिये.

लेकिन सुरक्षित रिसोर्ट में घुसके विधायक वाटवे की हत्या करवा दी उन्ही माओवादियोंने..!

उस शाम स्पेशल मीटिंग के तहत तिवारीजी दिल्ली के मुख्यमंत्री अग्रवाल जी से मिले. उनसे मिलते ही इस सारे षडयंत्र का आगा पीछा जान गए तिवारी जी.

शाम को गृहमंत्री और प्रधानमंत्री के साथ हाई लेवल मीटिंग में कुछ यूं रिपोर्ट किया तिवारीजी ने.

“देश के कई IAS और IPS दर्जे के अफसर पिछले 25 सालों से माओवाद की जड़ों को ब्यूरोक्रेसी के अंदर मजबूत करने लगे है. घोटालों की सरकार को गिराने के आंदोलनों में दो महत्वपूर्ण ताकतों का योगदान रहा. एक थी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विचारधारा और दूसरी माओवादी विचारधारा. जहाँ एक ओर राष्ट्रवादी सेवा संघठन की लगभग सौ साल पुरानी ताकत अपने सपने को साकार करते हुए सत्ता में आ गयी, उसी वक्त इसी लहर पे चढ़ कर माओवाद की नौका ब्यूरोक्रेसी से चलकर राजनीति में आ गई. अब तक न्यूज मीडिया, प्रोफेसरों, साहित्यिकों एवं समाजसेवकों में ऊंचे पायदान तक पहुंचे हुए माओवादी अब सक्रिय राजनीति का हिस्सा बन गए है. ये किसी मायावी राक्षस से कम नहीं है. ब्यूरोक्रेटिक माओवादियों के मसीहा को अगर सलाखें दिखाई जाएं तो सालभर के अंदर अंदर ये कीचड़ साफ कर देंगे..”

“बिना कीचड़ के कमल कैसे खिलेगा?” गृहमंत्री जी ने कहा

“मंत्री जी आप कहना क्या चाहते है?” तिवारी जी ने पूछा

प्रधानमंत्रीजी बोले, “देखो तिवारी, हम उस संघठन में 20 साल तक रहें है जिसकी जान पर ये माओवादी आफत बने है. क्या लगता है प्रधानमंत्री बनतेही इनको खत्म करना हमें न आता? बल का प्रयोग अगर हम करेंगे तो समझ लेना उनके मकसद में हमने हाथ बटा लिया. वो चोरी छिपे इतना कर सकते है तो क्या हम छुपकर ही उनके मकसद नहीं तोड़ सकते? अग्रवाल जी कल मिलने आएंगे. उनका बिभीषन हम छीन लेंगे तो देखते है कैसे टिकते है हमारे सामने. आप अपना काम करते रहिए मगर गांधीजी को न भूलिए. और हां, विधायक की हत्या में उनका कोई हाथ नही है!”

अब तक जिस शेरलॉक वाले दिमाग से चल रहे थे तिवारी जी,चाणक्य नीति सामने आते ही अचरज में आ गए. मीटिंग के बाद वो जैस्वाल जी से मिले. जैस्वाल जी ने आनेवाले प्लान के बारें में उन्हें समझाया. सुनकर तिवारीजी बस इतना बोले, “तो अभी तक जो कार्रवाइयाँ हुई उनका मकसद सिर्फ जाधव साहब को डराना था? और अगर माओवादी कल चलकर दंगे भड़काएँ तो?”

“तो फिर भगवान जाने क्या होगा उनका…लेकिन फिलहाल के लिए वो ये बेवकूफी वो नहीं करेंगे…” जैस्वाल जी ने कहा…

To be continued….

Warm Regards,

Dnyanesh Make “The DPM”


2 Comments

नाक के नीचे से - भाग 1 - Words Of DPM · 25 December 2020 at 2:43 pm

[…] part 2part 3Categories: Short StoriesTags: detective-storyHindi StoryPolitical Fiction […]

नाक के नीचे से - अंतिम भाग! (भाग 3) - Short Stories - Words Of DPM · 25 December 2020 at 2:44 pm

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