उसकी कोहनी से पकड़कर यूँ नजाकत से खींच लेता पास,
तो पूछता, क्या है ज़्यादा खूबसूरत, उसकी आँखें या उनमें डूबने का खयाल?
पलके झुकाकर जो वो बिना लफ़्ज़ों के कहदे बहुत कुछ;
बता देता हूँ पूरी कायनात की औकात नहीं उन आँखों के झील में समाने की!
कुछ गम धोखे के है, कुछ है चैन छीन जाने के,
मुहब्बत के आसमान में उड़ते उड़ते पैरोंतले जमीन जाने के!
क्या खूब रहा होगा खुदा की कारीगरी का कमाल,
गिरते हुए समंदर में जो ले बीच मे संभाल;
क्या ये आईं है परियों की नगरी से, या है कोई मसीहा,
बस चाहत है इसको पाना, क्या दिखेगा मुझे इसका जहाँ?
किनारे पर उतरा हूँ पर घर जाना है नहीं,
तूफान आके समेट ले, पर इंतजार करूँगा मैं यही!
शायद वो दो पल की मेहमान थी, या शायद दो पल बाद आनेवाली है;
शायद तारे चमकेंगे या फिरसे किस्मत रोनेवाली है!
जो होगा, हूँ तय्यार, इस दफा कफ़न साथ मे है,
जीते तो गाज़ी शहरे इश्क़ के, हारे तो भी क्या किस्मत हाथ में है!
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