छप्पन भोग लगाकर तुम
जिसको पाना चाहोगे
उपवास करके महसूस होगा
वो तुम्हारे साथ ही है
दस शत्रुओं से जीतकर
उनका खून पी जाना
सबसे बड़े शत्रु मगर
अपने खुदके जज्बात ही है!
इन जज्बातों की जद में
बस इतना गुनाह हो जाता है
खाई कसमों और दिए वादों का
झूठा समा हो जाता है
समा ये आखिर तब्दील
होता है जंग में
तूफान आ जाए जैसे
हल्की सी एक तरंग में
रोते हुए बाण चलेगा
अपनों की ही जान पर
अपना खून डालेगा हाथ
जब द्रौपदी के सम्मान पर
इन सारी ही बातों में बस
इतना करना था कर्ण
धर्म का साथ देते हुए
रोकना था तुम्हे अधर्म
अभिमन्यु पर निहत्थे अगर
तुम वार करने से रोकते
शायद अपने साथ फिर अन्याय
होता हुआ न देखते
हर मौके पर कर्ण तुमने
जब अधर्म को चुना
भगवान ने तब तब तुम्हारी मौत का
एक एक धागा बुना
तुम्हारा पुण्य कम पड़ा
के तुम सुदर्शन से नहीं मरे
और तुम्हारा धर्म भी कम पड़ा
जब तुम रथ से नीचे उतरे
तुम्हारे रथ का पहिया
वहीं पर धसना तय था
तुम्हारा सर अर्जुन के बाण से
ऐसे ही कटना तय था
कर्ण तुम्हारे चाहनेवाले
अक्सर ये बात भूल जाते है
की गलती तुम्हारी ज्यादा थी
लेकिन तुम्हारी दानवीरता में झूल जाते है
इंद्र ने छल से कवच छीना
और परशुराम का भी था श्राप
वासवी शक्ति व्यर्थ घटोत्कच पर गई
सब थे तुम्हारे ही पाप
एक बार को मित्रता निभाते
दुर्योधन को देते लाफा
तिरस्कार की राह भुलाकर
उसे पहनाते धर्म का साफा
या फिर कृष्ण के पूछने पर
तुम अपने तत्वों पर न अड़ते
युद्ध शुरू ही न होता
न युद्ध में तुम्हारे साथ कौरवों के शव सड़ते
एक बार भी दुर्योधन को छोड़
कृष्ण को अपनाया होता
शायद कृष्ण ने गीता का पाठ
तुम्हे भी सुनाया होता
आज भी अगर तुम जीवित हो
मुझमें या इन सबमें
आज भी तुम्हे अवसर है
की जाए धर्म की शरण में
बस त्याग करना है हर चीज
जो नीति के विपरित हो
मित्र क्या सगे भाई तक से
ऐसे में मतभेद असीमित हो
माना की कोई दुर्योधन हाथ देगा
अपने स्वार्थ के लिए लेकिन साथ देगा
ठुकराना ऐसी मित्रता को हर धर्म युद्ध में
सत्य के साथ खड़े रहना हर किसी के विरुद्ध में
सबसे बड़ा युद्ध मगर
तो अपने खिलाफ ही लड़ना है
अपनी ही भावनाओं पर वश करके
अपना ही मन पढ़ना है
हर चीज जिससे लगाव हो
उसे छोड़ने की तैयारी रखो
चाहे जो हो जिंदगी में मगर
अपना उद्दिष्ट जारी रखो!
– The DPM
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