ऐ तितली, क्या तुम्हे पता हैं
की तुम्हारे इन पंखों के फड़फड़ाने आते है चक्रवात
शांति से चल रही वो नौका
समंदर की लहरों में भूचाल कराएगी
ऐ तितली, तुम वही हो
जिसने किसीके मन में घोला एक संशय
बस मात्र वही कारण की रक्तपात हो चुके
ऐ तितली, तुम वही हो जिसने वो टहनी हिलाई
और उखड़ गए मूल से सारे फलदायी पेड़
ऐ तितली इन घटनाओं से
तुम्हारा संबध बस इतना है
कर्मयोग के चक्र में
तुम निमित्त बन जाती हो
दी गई दुवाओं की खातिर
तुम फूल पर सज जाती हो
तुम्हारा होना मानव के आनंद का कारण है
तुम्हारा होना भगवान के पैरों का व्रण है
ऐ तितली तुम्हारी आयु हो भले ही छोटी
कर्म और काल के चक्र को चलाना तुम्हारा प्रण है
तितली तुम रूपक हो, रूप बदलकर आओगी
कभी मत्स्य बन शकुंतला की अंगूठी खा जाओगी
कभी बनोगी श्रवण कुमार और रघुवंश के श्राप का कारण
भूल से भी भूल होकर दशरथ पाएगा पुत्रशोक से मरण
तृण का पत्र बन मां सीता की रक्षा भी तुम करोगी
रहस्य भेदकर श्रीराम का बाण रावण के पेट में मारोगी
प्रतिज्ञा बन भीष्म की, बदलोगी कुरुवंश का चित्र
प्रेम की इच्छा बन श्राप लाओगी, और सिधार जायेंगे पांडवों के पितृ
कभी सुभद्रा की नींद बन गर्भसंस्कार अपूर्ण छुड़वाओगी
अभिमन्यु की मृत्यु परांत धर्मराज से भी नियम तुड़वाओगी
कलयुग के आरंभ हेतु, बनोगी शिकारी का बाण
भगवान विलीन करेंगे अवतार और त्याग देंगे प्राण
प्रलय बन सरस्वती को लुप्त करोगी संसार से
सिंधु घाटी फिर वंचित रह जायेगी उद्धार से
श्रुति स्मृति बन वेदों को रखोगी तुम ही जीवित
कलयुग के प्रारंभ में जनपद होंगे गर्वित
कलयुग के फिर रंग सृष्टि के कण कण में मिलेंगे
धर्म अधर्म एक ही मनुष्य के मन में मिलेंगे
चोरों को सत्कार मिलेगा साधुओं को दंड
अनीति का पर्याय न होगा, असत्य भी बढ़ेगा प्रचंड
वासना मूल्य होगी और निष्काम न होंगे कर्म
पंथों में बटेंगे लोग और भूल जायेंगे धर्म
सत्य सनातन की राह में भी असत्य छद्म पनपेगा
दुर्जन कोई राक्षस सबकी सज्जनता भी नापेगा
सब कुछ बुरा नहीं है कलयुग, मत करो उसपर खेद
प्रगति कर मनुष्य जायेगा अवकाश को भेद
बुद्धि का विकास होते होते मानव बुद्धि बनाएगा
छप्पन भोग के सारे क्षीर एकसाथ खा पाएगा
अवतार आने में होगी देर पर कैसी ये निराशा
तत्वमसि कहा तो है, तुम्ही तो ब्रम्हांड की भाषा
ये अनुभूति रखना जीवित और अपना काम करो
कोई वीर सा पराक्रम नही बस किसीको हसाके मरो
पुण्य पाप की चिंता किए बगैर धर्म निभाए जा
कर्तव्य समझ अपना सत्कर्म गंगा में बहाए जा!
-The DPM
Categories: LiteraturePoems
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