खुद ही चलकर, खुद ही गिरकर
उठके फिर से चलना जो हमें आता है;
लाख उठे तूफान फिर भी,
दीये की तरह जलना जो हमें आता है;
ये आज की तो बात नहीं है!
रूह के कतरे मेरे बिखर बिखर कर जुड़े थे,
सारे गम जाने कितने दिन खामोश पड़े थे;
चिंगारी जलती रही एक उम्मीद जिसे कहा जाए,
बस उसके दम पर जहाँ राह वहाँ जाए;
उन राहों में फिरसे मुश्किलों से लड़ना जो हमें आता है,
ये आज की बात तो नहीं है!
या खुदा मेहरबानी करो, कभी गुरुर बख्शीश ना देना,
ताकत के मारे पनाह भूलूँ ऐसा कोई आशीष न देना;
लाक्षागृह से कुरुक्षेत्र तक कभी अमन को ना भूलूँ,
आततायी बनकर अपने किये किसी पतन को ना भूलूँ;
छिड़े जंग तो लड़े बेबाक ये तौर हमें जो आता है,
ये आज की बात तो नहीं है!
Warm Regards
Dnyanesh Make “The DPM”
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Mayuri · 9 May 2020 at 11:57 pm
Nice✌
Thanks Mayu